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धर्म : धूमधाम से मनाया जा रहा श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने दी बधाई

Krishnashtami 2025 : इस वर्ष भगवान श्रीकृष्ण का 5252वां जन्मोत्सव मनाया जा रहा है. हिंदू पंचांग के अनुसार वर्ष 2025 में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व 16 अगस्त, शनिवार को मनाया जा रहा है. यह पावन अवसर भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में पूरे देश में बड़े हर्ष और उल्लास से मनाया जाता है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन्माष्टमी की शुभकामना दी है.
भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित किया जाता है विशेष भोग
माखन-मिश्री
भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं में माखन और मिश्री का विशेष स्थान है. वे बचपन में चुपचाप घर-घर जाकर माखन चुराते थे, इसी वजह से माखन-मिश्री का भोग उन्हें अत्यंत प्रिय है. जन्माष्टमी के दिन इसका भोग लगाने से श्रीकृष्ण की विशेष कृपा मानी जाती है.
पंचामृत
दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से बना पंचामृत शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है. इस दिन श्रीकृष्ण का पंचामृत से अभिषेक करना और इसे भोग स्वरूप अर्पित करना अत्यंत शुभ माना जाता है. इससे विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है.
पंजीरी को भोग
पंजीरी धार्मिक पर्वों जैसे जन्माष्टमी और राम नवमी पर पंजीरी का भोग लगाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. यह भगवान को अर्पित किए जाने वाले प्रमुख प्रसादों में से एक है और इसे श्रद्धा से अर्पित करने पर विशेष फल मिलता है.

लौकी या खोए का पाग
जन्माष्टमी पर कई लोग लौकी, खोया, तिल या मूंगफली से बनी हुई विशेष मिठाई (जिसे पाग कहा जाता है) का भोग भी लगाते हैं. यह मिठाई भक्ति और प्रेम का प्रतीक मानी जाती है और इसे प्रसाद रूप में बांटना भी पुण्यदायी होता है.
द्वारकाधीश मंदिर में उमड़ी भक्तों की भीड़
जन्माष्टमी के अवसर पर गुजरात के द्वारका स्थित द्वारकाधीश मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी
श्री वेणुगोपाल कृष्ण मंदिर
कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर त्रिची स्थित श्री वेणुगोपाल कृष्ण मंदिर में भगवान कृष्ण के लिए विशेष अनुष्ठान और अभिषेकम किए गए, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए.

जन्माष्टमी पर लड्डू गोपाल को खीरे में रखने की परंपरा
जन्माष्टमी के दिन एक विशेष परंपरा निभाई जाती है, जिसमें लड्डू गोपाल की छोटी मूर्ति को इस तरह रखा जाता है जैसे वे माँ के गर्भ में हों. इस परंपरा में खीरे को गर्भ का प्रतीक माना जाता है, और उसी में भगवान श्रीकृष्ण को स्थापित किया जाता है. इस आयोजन का उद्देश्य भगवान के अवतार की पावन स्मृति को संजोना है. यह परंपरा न केवल भक्तों की गहरी आस्था को दर्शाती है, बल्कि भगवान और भक्त के बीच एक आत्मिक संबंध को भी प्रकट करती है. यह भक्ति भाव को और भी सजीव बना देती है, जिससे भक्त श्रीकृष्ण के जन्म का आध्यात्मिक अनुभव कर पाते हैं.
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