HOOL DIWAS : आज यानी 30 जून को पूरे झारखंड में हूल दिवस मनाया जा रहा है. इसे संथाल विद्रोह के नाम से भी जाना जाता हैं. साल 1855-56 में संथाल विद्रोह से अंग्रेजी हुकूमत कांप गयी थी. सिद्धो और कान्हू जो दोनों भाई थे, इसका नेतृत्व किया था. आज के दिन हरेक साल हूल दिवस मनाकर इन महान क्रांतिकारियों को नमन किया जाता है. इनकी जन्म स्थली संथाल के भोगनाडीह में इन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर उन्हें याद किया जाता है. माना जाता है संथाल विद्रोह में 10 से 15 हजार आदिवासी शहीद हुए थे. इसके नायक सिद्धो और कान्हू थे, जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने मौत के घाट उतार दिया था. इनके 2 अन्य भाइयों चांद-भैरव और 2 बहनों फूलो-झानो ने भी इस क्रांति के दौरान शहादत दी थी. कार्ल मार्क्सम ने अपनी रचना में इसका उल्लेख किया था. कार्ल मार्क्सा ने अपनी विश्वप्रसिद्ध रचना ‘नोट्स ऑन इंडियन हिस्ट्री’ में इस जन युद्ध का उल्लेख किया है. इसके पहले लंदन से प्रकाशित अंग्रेजी अखबारों ने भी संथाल हूल पर लंबी रपटें छापी थीं. अखबारों में इस आंदोलन की तस्वीरें चित्रकारों से बनवाकर प्रकाशित की गई थीं. इन्हीं खबरों से कार्ल मार्क्सस जैसे राजनीतिक दार्शनिकों को आदिवासियों के अदम्य संघर्ष की जानकारी मिली.
सिद्धो और कान्हू 3 जनवरी 1856 को हुए थे गिरफ्तार
अंग्रेजी हुकूमत और महाजनी प्रथा के खिलाफ बगदाहा में सिदो और कान्हू आंदोलन को और तेज धार लाने के लिए संथालों को एकत्रित करने में जुटे थे और उन्हें लोगों का भरपूर समर्थन भी मिल रहा था. आजादी के आंदोलन और महाजनी प्रथा के खिलाफ बढ़ चढक़र हिस्सा लेने के कारण आदिवासी समुदाय में इनकी छवि मरांग बुरू की हो गई थी. जहां भी ये जाते इन्हें अपार जन समर्थन मिलता था. इसका नतीजा हुआ कि अंग्रेज इन दो भाइयों को पकड़वाने के लिए इनामी राशि की घोषणा कर दी. अंग्रेजों का यह नया तरीका काम आया और उन्हें सिद्धो-कान्हू के आंदोलन की पल पल की जानकारी मिलने लगी. हलांकि पुलिस ने उन्हें कई बार पकड़ने का प्रयास भी किया जिसमें वे सफल नहीं हुए. दूसरी ओर सिदो-कान्हू का संदेश गांव गांव पहुंचने से लोगों ने महाजनों से कर्ज लिए पैसे को लौटाना बंद कर दिया और सरकारी मालगुजारी भी देना बंद दिया. इससे बौखलाई अंग्रेजी हुकूमत महाजनों की मदद से 3 जनवरी 1856 को इन्हें बगदाहा से गिरफ्तार कर लिया और भोगनाडीह ले जाकर फांसी दे दी.
हूल दिवस को लेकर अहम जानकारियां
– ईस्ट इंडिया कंपनी और जमींदारी प्रथा (महाजनी प्रथा) के खिलाफ संथालों का विद्रोह
– 30 जून 1855 को यह विद्रोह शुरू हुआ
– यह विद्रोह 3 जनवरी 1856 तक चला
– संथाल विद्रोह को प्रेसीडेंसी सेनाओं द्वारा दबा दिया गया
– संथाल विद्रोह का नेतृत्व चार भाइयों सिद्धू, कान्हू, चांद, भैरव ने किया था
– इनकी दो बहनें फूलो और झानो भी शहीद हुईं
– संथाल विद्रोह को सिद्धू और कान्हू मुर्मू ने नेतृत्व किया
– अनुमान है कि विद्रोह के दौरान 10 से 15 हजार आदिवासी शहीद हुए
– सिद्धू-कान्हू को अंग्रेजी हुकूमत ने भोगनाडीह में फांसी दे दी
