Puri/Ranchi: ओड़िशा के पुरी समेत पूरे देश में आज भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा निकलेगी. इसमें लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेंगे. पुरी में इसके लिए खास इंतजाम किया गया है. वहीं रांची स्थित जगन्नाथपुर मंदिर से भी भगवान जगन्नाथ का रथ खींचा जाएगा. भगवान के साथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी रथ पर सवार रहेंगे. इस साल यह यात्रा 27 जून यानी आज से शुरू होकर 8 जुलाई तक चलेगी. भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ विशाल रथों पर सवार होकर पुरी के मुख्य मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक जाएंगे. यह यात्रा 12 दिन तक चलती है और हर दिन का खास महत्व होता है.
8 जुलाई को होगा समापन
रथयात्रा कुल 12 दिनों तक चलेगी और इसका समापन 8 जुलाई 2025 को नीलाद्रि विजय के साथ होगा, जब भगवान पुनः अपने मूल मंदिर में लौटेंगे. इस रथयात्रा के दौरान कई धार्मिक रस्में, अनुष्ठान और विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
27 जून, शुक्रवार को रथयात्रा का आयोजन
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा तीन अलग-अलग भव्य रथों पर सवार होकर पुरी के जगन्नाथ मंदिर से निकलते हैं और गुंडिचा मंदिर की ओर यात्रा करते हैं. हजारों भक्त भारी रस्सों से इन रथों को खींचते हैं. रथ पर चढ़ाने से पहले पुरी के राजा ‘छेरा पन्हारा’ की रस्म निभाते हैं, जिसमें वे सोने के झाड़ू से रथ का चबूतरा साफ करते हैं. वहीं दूसरी जगहों पर एक ही रथ पर भगवान जगन्नाथ, बलभ्रद और सुभद्रा को विराजमान करा कर रथ खींचा जाता है.
1 जुलाई, मंगलवार– हेरा पंचमी, देवी लक्ष्मी भगवान से मिलते आती हैं
जब भगवान गुंडिचा मंदिर में पाँच दिन बिताते हैं, तब पाँचवें दिन देवी लक्ष्मी नाराज़ होकर भगवान जगन्नाथ से मिलने आती हैं. यह रस्म हेरा पंचमी कहलाती है.
4 जुलाई, शुक्रवार– भगवान जगन्नाथ का संध्या दर्शन
गुंडिचा मंदिर में विशेष दर्शन का आयोजन होता है. इस दिन श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के दर्शन करते हैं और इसे बड़ा शुभ अवसर माना जाता है.
5 जुलाई, शनिवार– बहुदा यात्रा- मौसी मां के मंदिर रूकते हैं भगवान जगन्नाथ
भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ रथों पर सवार होकर वापस जगन्नाथ मंदिर की ओर लौटते हैं. इस वापसी यात्रा को बहुदा यात्रा कहा जाता है. रास्ते में वे मौसी माँ के मंदिर (अर्ध रास्ते में) रुकते हैं, जहाँ उन्हें ओड़िशा की खास मिठाई ‘पोडा पिठा’ का भोग लगाया जाता है.
6 जुलाई, रविवार– सुना बेशा- भगवान का होता है भव्य श्रृंगार
इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को स्वर्ण आभूषणों से सजाया जाता है. यह अत्यंत भव्य श्रृंगार होता है जिसे देखने हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं.
7 जुलाई, सोमवार– अधरा पना- भगवान को अर्पित किया जाता है मीठा पेय
इस दिन भगवानों को एक विशेष मीठा पेय ‘अधरा पना’ अर्पित किया जाता है, जो बड़े मिट्टी के घड़ों में तैयार होता है. इसमें पानी, दूध, पनीर, चीनी और कुछ पारंपरिक मसाले मिलाए जाते हैं.
8 जुलाई, मंगलवार – नीलाद्रि विजय- समापन
यह रथ यात्रा का अंतिम और सबसे भावनात्मक दिन होता है। इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा वापस अपने मुख्य मंदिर में लौटते हैं और गर्भगृह में पुनः स्थापित होते हैं. इसे ‘नीलाद्रि विजय’ कहा जाता है.
रथयात्रा का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथयात्रा को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायी माना गया है. मान्यता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से इस यात्रा में भाग लेता है या भगवान के रथ को खींचता है, उसके जीवन के पाप नष्ट हो जाते हैं. यह भी माना जाता है कि रथयात्रा में शामिल होने से व्यक्ति को ऐसा फल प्राप्त होता है, जैसे उसने सौ यज्ञों का आयोजन किया हो.
