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आदिवासी चेतना के अग्रदूत गुरूजी को श्रद्धांजलि, प्रेस एडवाइजर रहे शफीक अंसारी ने सुनाई संघर्ष की कहानी

सौरभ राय/आइडियल एक्सप्रेस
Ranchi : झारखंड की राजनीति, आदिवासी चेतना और सामाजिक आंदोलनों की जीवंत मिसाल रहे दिशोम गुरु शिबू सोरेन का सोमवार को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया. वे लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे. उनके निधन की खबर से पूरा झारखंड शोकमग्न है. शिबू सोरेन सिर्फ एक नाम नहीं, एक आंदोलन थे और एक ऐसा चेहरा, जिसने आदिवासी समाज को आत्म-सम्मान और राजनीतिक पहचान दिलाने में केंद्रीय भूमिका निभाई. शिबू सोरेन के निधन के बाद, उनके जीवन और संघर्षों को याद करते हुए उनके पुराने सहयोगी और पूर्व प्रेस एडवाइजर, वरिष्ठ पत्रकार शफीक अंसारी ने एक भावुक संस्मरण साझा किया.
“वो एक ही थे, दूसरा कोई नहीं हो सकता…” – शफीक अंसारी
वरिष्ठ पत्रकार शफीक अंसारी ने ‘आइडियल एक्सप्रेस’ से विशेष बातचीत में शिबू सोरेन के साथ बिताए गए समय को याद करते हुए कहा- “शिबू सोरेन एक ही थे, दूजा कोई वैसा व्यक्तित्व का नहीं हो सकता. वे सिर्फ नेता नहीं, आंदोलन की आत्मा थे.” शफीक अंसारी ने बताया कि वे उन दिनों की बात नहीं भूल सकते जब झारखंड को अलग राज्य बनाने की लड़ाई अपने चरम पर थी. शिबू सोरेन गांव-गांव, जंगल-जंगल घूमते थे. वे कभी थकते नहीं थे. कई बार तो ऐसा होता कि बिना खाये पूरे दिन आंदोलन में लगे रहते.
आदिवासी समाज के उत्थान के लिए जीवन किया समर्पित : शफीक अंसारी
शफीक अंसारी ने कहा कि शिबू सोरेन का पूरा जीवन आदिवासी समाज के विकास, अधिकारों और सम्मान के लिए समर्पित रहा. वे अपने नेतृत्व में न केवल झारखंड आंदोलन को राष्ट्रीय स्तर तक ले गए, बल्कि राजनीतिक रूप से भी इसे एक मजबूत पहचान दिलाई. “उनका सपना था एक सुनहरा झारखंड बनाने का जो शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मनिर्भरता में अग्रणी हो. वे चाहते थे कि आदिवासी समाज सिर्फ जंगलों तक सीमित न रहे, बल्कि मुख्यधारा में सम्मानजनक जीवन जिए.”
“नशामुक्ति और सामाजिक सुधार की अलख जगाई”
शफीक अंसारी कहते हैं कि सिर्फ राजनीति ही नहीं, शिबू सोरेन सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे. उन्होंने आदिवासी समाज में व्याप्त नशाखोरी के खिलाफ अभियान चलाया. शफीक अंसारी बताते हैं कि दिशोम गुरु ने गांवों में जाकर लोगों को शराब और अन्य नशा से दूर रहने के लिए प्रेरित किया. वे कहते थे अगर समाज को बचाना है, तो पहले नशा से मुक्त रहना होगा.
गुरूजी का आंदोलन से मुख्यमंत्री तक का सफर
शिबू सोरेन जमीन से उठकर देश की सबसे ऊँची पंचायत संसद तक पहुंचे. वे झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. केंद्रीय मंत्री रहे. वे कई बार सांसद रहे. वर्तमान में भी वे राज्यसभा सांसद थे. इसके बावजूद वे अपने जड़ से जुडे रहे. शफीक अंसारी कहते हैं कि शिबू सोरेन दिल्ली में भी झारखंड की मिट्टी की खुशबू लेकर चलते थे. वे हर फैसले से पहले सोचते थे कि क्या इससे मेरे समाज को फायदा होगा?
शफी अंसारी ने कहा- अंतिम जोहार
शफीक अंसारी ने कहा कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन झारखंड और देश के लिए एक युग का अंत है. उनके जैसे नेता विरले होते हैं जो सिर्फ भाषण नहीं देते, बल्कि धरातल पर उतरकर बदलाव लाते हैं. गुरूजी को अंतिम जोहार.
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